पंचक्रोशी यात्रा   (वैशाख कृष्ण दशमी  से वैशाख अमावस्या)


मानव अपनी भलाई के लिए क्या-क्या नहीं करता. इहलोक से परलोक तक का सारा धार्मिक, सांस्कृतिक कारोबार उसकी इसी उद्दामअभिलाषा की देन है। दुनिया के प्रमुख ज्योतिर्लिगों में से एक महाकालेश्वर की नगरी उज्जैन की पंचक्रोशी यात्रा को दिव्यशक्तियों के निकट ले जाने वाला माना जाता है। कहने को यह यात्रा सम्पूर्ण मानव-समुदाय के कल्याण के लिए निकाली जाती है, पर अपने भले की लालसा ही मुख्य है। छह दिनों तक चलने वाली पंचक्रोशी यात्रा 118 किलोमीटर दूरी तय करती है 

उज्जैन , देवी पार्वती के लिए भगवान शिव द्वारा बनाया गया था और उनके साथ चार द्वार पाल , शहर की रक्षा करने के लिए चारों दिशाओं में नियुक्त किए  गया थे । पूर्व मे पिंगलेश्वर ,पश्चिम मे बिल्वकेश्वर , उत्तर मे दुर्दुश्वर , दक्षिण मे कायावरोहणेश्वर है । उज्जैन का आकार चोकोर है , क्षेत्र के रक्षक देवता श्री महाकालेश्वर का स्थान मध्य बिन्दु में है , इस बिन्दु से चार -चार कोस के अंतर से मंदिर स्थित है जो दुवारपाल कहलाते है 

पुरातन काल से ही अपने पापों के प्रायश्चित के लिए इंसान द्वारा तरह-तरह के अनुष्ठानों का आयोजन किया जाता रहा है और इसका मकसद ईश्वर के प्रति निकटता पाना होता है। यह सिलसिला आज भी जारी है। ऐसी मान्यता है कि पापों को जलाकर राख करने की शक्ति बाबा महाकाल में है।स्कंद पुराण में कहा गया है कि पूरे जीवन के काशीवास से ज्यादा महत्वपूर्ण तथा पुण्यकारी काम वैशाख के मास में पांच दिन का अवंतीवास है।


पापों से मुक्ति पाने और पुण्य कमाने के लिए ही देश भर के श्रद्धालु पंचक्रोशी यात्रा में हिस्सा लेने के लिए उज्जैन पहुँचते हैं। मान्यता है कि इस लम्बी यात्रा में शामिल होने से निहित स्वार्थ, दूराग्रह, पूर्वाग्रह, कटुता, वैमनस्यता तथा मोहमाया के सारे बंधन मानों पीछे छूटे जाते हैं।

वैशाख मास की कृष्ण पक्ष की दशमी को पंचक्रोशी यात्रा शुरू होती है पंचक्रोशी यात्रा 118 किलोमीटर तक निकाली जाती है और इसमें कुल नौ पड़ाव व उप पड़ाव आते हैं। इन पड़ावों व उप पड़ावों केबीच कम से कम छह से लेकर 23 किलोमीटर तक की दूरी होती है।


(यात्रा मार्ग - पड़ाव दूरी )

  1.  नागचंद्रेश्वर से पिंगलेश्वर पड़ाव के बीच 12 किलोमीटर
  2.  पिंगलेश्वर से कायावरोहणेश्वर पड़ाव के बीच 23 किलोमीटर
  3.  कायावरोहणेश्वर से नलवा उप-पड़ाव तक 21 किलोमीटर 
  4.  नलवा उप पड़ाव से बिल्वकेश्वर पड़ाव अम्बोदिया तक छह किलोमीटर
  5.  अम्बोदिया पड़ाव से कालियादेह उप पड़ाव तक 21 किलोमीटर
  6.  कालियादेह से दुर्दुश्वर पड़ाव जैथल तक सात किलोमीटर
  7.  दुर्दुश्वर से पिंगलेश्वर होते हुएउंडासा तक 16 किलोमीटर 
  8.  उडांसा उप पड़ाव से क्षिप्रा घाट कर्कराज दर्शन , रेत मैदान उज्जैन तक 12 किलोमीटर का रास्ता तय करना होता है।
  9. क्षिप्रा तट से अष्टतीर्थे यात्रा प्रारंभ होती है 


पुरातन काल से चली आ रही परंपरा के अनुसार यह यात्रा क्षिप्रा नदी में स्नान व नागचंद्रेश्वर की पूजा के साथ वैशाख कृष्ण दशमी से शुरु होती है।


1.  पहला पड़ाव

2. दूसरा पड़ाव


3. तीसरा  पड़ाव


4. चौथ पड़ाव



पंचक्रोशी यात्रा उज्जैन में होने वाला प्रतिवर्ष का आयोजन है। यह धार्मिक यात्रा 118 किमी लंबी होती है और अप्रैल माह में आयोजित होती है जिसमें वैशाख की तपती दोपहर में हजारों श्रद्घालु आस्था की डगर पर यात्रा करते हैं। हालांकि यात्रा मार्ग कुछ स्थानों पर जर्जर होने के साथ समस्याओं से घिरा है। यात्रा के कुछ प़ड़ाव शिप्रा के किनारे हैं।


पंचक्रोशी यात्रा पर जाने वाले श्रद्घालु यात्रा प्रारंभ होने के एक दिन पहले नगर में आकर मोक्षदायिनी शिप्रा के रामघाट पर विश्राम करते हैं। प्रातः शिप्रा स्नान कर पटनी बाजार स्थित नागचंद्रेश्वर मंदिर पहुँच भगवान नागचंद्रेश्वर को श्रीफल अर्पित कर बल प्राप्त करते हैं। इसके बाद यात्रा शुरू होती है।


पंचक्रोशी यात्रा के प़ड़ावों पर यात्रियों को ग्रामीणों की सेवा से राहत मिलती है। ग्रामीण पेयजल, भोजन, ठंडाई आदि के इंतजाम कर दिन-रात सेवा कार्य में लगे रहते हैं। ग्रामीणों के सेवा कार्यों के चलते ही धार्मिक यात्रा सफल हो पाती है।


पंचक्रोशी यात्रा में पिंगलेश्वर, करोहन, बिलकेश्वर, कालियादेह महल तथा रेती घाट इस तरह कुल पाँच प़ड़ाव आते हैं। नगर प्रवेश के पश्चात रात्रि में यात्री नगर सीमा स्थित अष्टतीर्थ की यात्रा कर त़ड़के शिप्रा स्नान करते हैं। यात्रा का समापन भगवान नागचंद्रेश्वर को बल लौटाकर होता है। इसके लिए यात्री बल के प्रतीक मिट्टी के घो़ड़े भगवान को अर्पित करते हैं।

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